'पति के दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है.'
'पति का दिल जीतना है तो उसे स्वादिष्ट पकवान खिलाओ.'
ऐसी न जाने कितनी ही बातें हैं जो हम लंबे समय से सुनते ही आ रहे हैं. न सिर्फ सुनते आ रहे हैं, बल्कि इनपर अमल भी किया जा रहा है. सिनेमा-सीरियलों में दिखाते हैं कि लड़की के घर आये लड़के को लड़की खाना पकाकर खिलाती है और फिर लड़के को वो भा जाती है. उसी प्रकार हमारी संस्कृति का यह रिवाज है कि नवविवाहिता अपने ससुराल में पहली रसोई बनाती है. विवाह में किये जाने वाले कई रस्मों के बाद यह भी एक बड़ा रस्म होता है. पहली रसोई में नई आई दुल्हन के हाथ का बना खाना खाने के लिए तो कई घरों में रिश्तेदारों को तो एक अतिरिक्त दिन रोक भी लिया जाता है. बहु के बनाये खाने की तारीफें होती हैं और नेग भी दिया जाता है.
लेकिन कभी आपने सोचा है कि केवल पति के दिल का ही रास्ता पेट से होकर क्यूँ गुजरता है, पत्नियों का क्यूँ नहीं? दरअसल पत्नी को मिली जिम्मेदारियों में यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वो अपने पति को खाना पकाकर खिलाये. यूँ तो दो-तीन दशक पूर्व तक अधिकांश स्त्रियां घरेलू काम ही किया करती थीं. पति कमाते, पत्नी पकाती. लेकिन समय अब बदला है. महिलाएं कामकाजी हुई हैं.
आपकी माँ हों या बहन या फिर भतीजी या कोई भी महिला मित्र, कभी नोटिस किया है आपने? लड़कियां खाने में लड़कों की तुलना में बहुत आगे होती हैं. लड़के तो उतने डिशेज़ के नाम भी नहीं जानते जितनी लड़कियों को जुबानी याद रहती है. फास्टफूड के अलावा गोलगप्पा और अन्य चटपटे पकवान वे चटकारे लेकर खाती हैं. आप खुद महसूस कर सकते हैं कि अधिकांशतः डिशेज़ और फ़ूड आइटम्स के बारे में आपको लड़कियां ही बताती हैं. कारण ये नहीं कि वे सिर्फ पकाती हैं, बल्कि खिलाती भी हैं.
पत्नियों (यहाँ प्रेमिकाओं भी पढ़ें) के दिल का रास्ता भी पेट से होकर गुजरता है. हाँ ये अलग है कि वे विविध पकवान घर की डाइनिंग टेबल पर बैठकर नहीं खातीं, क्यूंकि कम ही बार स्त्रियां खुद के लिए पकाती हैं, वे अपने पति ( या प्रेमी) के पसंद या निर्देश पर पकाती हैं. लेकिन घर से बाहर निकलते ही चाट, गुपचुप, मोमो, आइसक्रीम और भी न जाने क्या-क्या डिशेज़ खाती हैं. और अगर खिलाने का सौजन्य उनके पति (या प्रेमी) की तरफ से है तो वे उनसे बड़ी प्रसन्न भी नजर आती हैं.
लड़कियां लड़कों के साथ कदमताल कर रही है. ऐसे में क्या आपको नहीं लगता कि नवविवाहिता के साथ साथ नवविवाहित पुरुषों से भी पहली रसोई की रस्म करवानी चाहिए? अब आप कहेंगे कि पुरुषों को तो खाना पकाना भी नहीं आता. लेकिन मैंने कई ऐसी स्त्रियां देखी हैं जिन्हें खाना पकाना नहीं आता. वे यूट्यूब देखकर या रेसिपी बुक पढ़कर विविध व्यंजन पकाती हैं. फिर तो ऐसा कर सकते हैं न पुरूष? मेरा मानना है कि पुरुषों को खाना पकाना भी आना चाहिए और नवविवाहित जोड़े का साथ में पहली रसोई की रस्म भी करवानी चाहिए.
अब एकल परिवार का चलन भी बढ़ा है. महिला-पुरूष सभी कामकाजी हैं, ऐसे में पुरुषों के लिए भी पहली रसोई की रस्म इसलिए होनी चाहिए कि वे खाना पकाने के लिए केवल अपनी पत्नी पर ही निर्भर न रहें. बल्कि वे अपनी पत्नी के लिए भी पकाएं. तब जब वो थकी हो, काम की व्यस्तता अधिक हो, पीरियड के दर्द में उसे आराम की जरूरत हो, वह प्रेग्नेंट हो, बच्चों के साथ उसकी व्यस्तता हो या फिर जब वो न हो तो उसे इस बात की तसल्ली हो कि आप भूखे नहीं रहेंगे या बाहर का खाना हर दिन नहीं खाएंगे. इससे यह भी अच्छा होगा कि यदि पति-पत्नी साथ खाना पकाएंगे तो दोनों को ही साथ समय बिताने का अच्छा मौका भी मिलेगा.
~ सुशान्त साईं सुन्दरम
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