अवंती



कभी फुदकती, कभी चहकती,
इठलाती, लहराती, बलखाती।
फूल-पत्तियां तोड़-तोड़कर,
नित नए श्रृंगार सजाती।
ऊधम मचाती, नाच नचाती,
सबके मन को है बहलाती।
बालों में चम्पी वो करती,
सर-पैर भी है दबाती।
कविता-कहानियां भी सुनाती,
जिसमें राजा-रानी को ब्रश करवाती।
कभी जंगल, कभी स्कूल भेजती,
उन्हें भी चोको पाई खिलाती।
अपनी उल-जुलूल हरकतों से,
पेट पकड़-पकड़ हंसाती।
घर में सबकी है लाडली,
तभी सुशान्त चाचू की अवंती कहलाती।

~सुशान्त / गिद्धौर
04/08/2017, शुक्रवार

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